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*ठग गोविंदानंद द्वारा शंकराचार्य जी के समर्थकों को दी गई चुनौती को राम मंदिर का फैसला हिंदुओ के पक्ष में करवाने काशी के उद्भट विद्वान ने किया स्वीकार*

*ठग गोविंदानंद द्वारा शंकराचार्य जी के समर्थकों को दी गई चुनौती को राम मंदिर का फैसला हिंदुओ के पक्ष में करवाने काशी के उद्भट विद्वान ने किया स्वीकार*

वाराणसी,10.6.24

हमें, ठग कपटी छली गोविंदनंद सरस्वती नामधारी के फेस्बु हैन्डल पर पोस्ट अमर उजाला समाचार पत्र की क्लिपिंग से आज ज्ञात हुआ है कि गोविंदानंद सरस्वती नामक व्यक्ति जो कि ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का शिष्य नहीं है परंतु उनका शिष्य बनने का प्रतिरूपण करते हुए जगतगुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर ‘स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का समर्थन करने वाले काशी के विद्वानों को शास्त्रार्थ की चुनौती दी है कि वे मठाम्नाय महानुशासनम् के अनुसार शंकराचार्य पद के लायक नहीं है।’

शंकराचार्य परंपरा के महान् विद्वान डॉ० परमेश्वर नाथ मिश्र; विद्वान मनीषी, विद्वन्मार्तंड, महान्यायविद् , विद्यावृहस्पति, वादिभयंकर, धर्मालंकार, विप्रकुलभूषण, ब्रह्मर्षि, सुमेधा, शंकराचार्य संवत प्रवर्तक (रजिस्ट्रीकृत), श्री राम जन्मभूमिपुनरुद्धरक, दुष्प्रधर्ष ने की चुनौती स्वीकार :-

१. गोविंदनंद स्वामी जी नामधारी व्यक्ति की उक्त चुनौती पूर्ण समाचार को को हावड़ा, पश्चिम बंगाल स्थित अपने आवास पर पढ़ कर ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य द्वय पीठाधीश्वर के अन्यतम गृहस्थ शिष्य डॉ० परमेश्वर नाथ मिश्र संस्थापक अध्यक्ष ‘शंकराचार्य परंपरा एवं संस्कृति रक्षक परिषद्’ (२५ वर्ष पूर्व स्थापित जिसके संरक्षक स्वयं द्वय पीठाधीश्वरजगतगुरु शंकराचार्य जी थे) को बहुत क्षोभ हुआ क्योंकि मिश्र जी का भी जन्म वाराणसी जनपद में ही हुआ है और काशी से उनका बहुत घनिष्ठ संबंध है। उनकी पूर्ववर्ती ७ वीं पीढ़ी के पूर्वज महान् वेद वेदांगादिविशारद सर्वशास्त्रनिष्णात योगज्ञ परम विद्वान महापंडित श्री हनुमान मिश्र जी के आशीर्वाद से जब तत्कालीन काशीनरेश महाराजा बलवंत सिंह ने सन् १७४८ ई० में भदोही पर विजय प्राप्त कर लिया तब उस विजित क्षेत्र में उन्होंने पूर्व और उत्तर वाहिनी गंगा के दो तटों की गोंद में स्थित तीन गाँवों की जागीर श्री हनुमान मिश्र जी को अर्पित कर दिया था, जिनमें से एक गांव में अब भी मिश्र जी का पैतृक निवास स्थान तथा दूसरे में उनके द्वारा संस्थापित महाशक्तिपीठ अँजोराधाम नामक प्रसिद्ध देवालय है जिसमें भगवान आदि शंकराचार्य का एक विशाल विग्रह और विशाल हिन्दू धर्मग्रंथागार है। वहां पर स्वयं ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य जी ने जाकर हजारों लोगों की उपस्थिति में श्री मिश्र जी को उसी प्रकार से दीक्षा दी थी जिस प्रकार से कभी मंडन मिश्र जी को उनके घर जाकर आदि शंकराचार्य ने दीक्षा दी थी।

संपूर्ण विश्व में श्री परमेश्वर नाथ मिश्रजी ही एक ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने आदि शंकराचार्य विरचित मठाम्नाय महानुशासनम् पर अंग्रेजी भाषा में शारदाभाष्य नामक ग्रंथ ६७ ग्रंथों से प्रमाणिक उद्धरणों को उधृत करते हुए लिखा है। इस ग्रंथ का आमुख राष्ट्रपतिपुरस्कार से पुरस्कृत कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं जगतगुरु शंकराचार्य गोवर्धन मठ पुरी के विशेष कृपापात्र डॉ० जयवमंत मिश्र जी ने लिखा है। इस पुस्तक में जगतगुरु शंकराचार्य पुरी पीठाधीश्वर महास्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी एवं उनके निजी सचिव श्री राजीव मिश्र (संप्रति स्वामी निर्विकल्पानंद सरस्वती जी) के साथ भाष्यकार मिश्र जी का छायाचित्र भी प्रकाशित है। इस ग्रंथ का प्रकाशन सन् २००१ में जगतगुरु शंकराचार्य शारदामठ – द्वारका स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराजके जीवन काल में शारदा मठ – द्वारका ने किया था।

जगतगुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी बनाम स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के मुकदमे में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने इस भाष्य को प्रमाणिक मानते हुए अपने दिनांक २२.०९.२०१७ को दिए गए निर्णय में ईसे आधारभूत ग्रंथ के रूप में बार-बार उद्धृत किया है। यह निर्णय २०१७ ए डी जे (सप्ली) १- ४९२ में मल्होत्रा ला हाउस , इलाहाबाद (संप्रति प्रयागराज) द्वारा प्रकाशित किया गया है।

मैथ्यू जेम्स क्लार्क ने पीएचडी उपाधि हेतु यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में प्रस्तुत किये गए अपने ‘शोध प्रबंध द् दसनामी सन्यासीज : इंट्रीगेशन ऑफ एसेटिक लिनीइजेज इनटू एन ऑर्डर’ में मठाम्नाय महानुशासनम् पर श्री परमेश्वरनाथ मिश्र द्वारा अंग्रेजी भाषा में विरचित शारदा भाष्य को बार-बार प्रमाण स्वरूप उद्धृत किया है। मैथ्यू जेम्स के इस शोध प्रबंध को प्रो क्वेस्ट एलएलसी ७८९ ईस्ट आइसेनहावर पार्कवे पी ओ बॉक्स १३४६ एन आरबर ने २०१७ में प्रकाशित किया है जिसका कॉपी राइट यूनाइटेड स्टेट्स कोड के अंतर्गत सुरक्षित है।

थिओसोफीस्ट विदेशी विद्वान डेविड रिगले ने भी श्री परमेश्वर नाथ मिश्र विरचित ग्रंथ इरा ऑफ आदि शंकराचार्य नामक ग्रंथ को आकार ग्रंथ के रूप में सूचीबद्ध किया है।

डॉ० परमेश्वर नाथ मिश्र जी द्वारा शंकराचार्य परंपरा और संस्कृति के संरक्षण तथा धर्म और ज्ञान के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए जगद्गुरु शंकराचार्य शारदामठ-द्वारका एवं ज्योतिर्मठ-बदरिकाश्रम महास्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने हस्ताक्षर युक्त पत्रकों द्वारा उन्हें ‘विद्वान मनीषी’ व ‘धर्मालंकार’ तथा ‘जगद्गुरु शंकराचार्य’ गोवर्धनमठ-पुरी महास्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने हस्ताक्षर युक्त पत्रकों द्वारा उन्हें ‘महानुभाव’ व ‘मंडन मार्तण्ड’ सम्मानोपाधियों से अलंकृत किया है। 20 जनवरी 2003 को मुंबई में जगद्गुरु शंकराचार्यों की महान प्रतिनिधि सभा में देश और विदेश के हजार से अधिक प्रतिष्ठित विद्वानों, इतिहासकारों की उपस्थिति में तत्कालीन जगद्गुरु कांची काम कोटिपीठाधिपति महास्वामी जयेंद्र सरस्वती द्वारा श्री मिश्र जी और अंतर्कर जैसे दो शंकरवादी विद्वानों को प्रसंशापत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया था।

मिश्र जी को उनके असाधारण ज्ञान एवं १० शोधात्मक ग्रंथ प्रणयन हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त श्री श्री विश्वविद्यालय कटक ने डी० लिट्ट ० सम्मानोपाधि से विभूषित किया है।

श्री मिश्र जी का गोविंदानंद सरस्वती स्वामीजी नामधारी को संदेश:

गोविंदानंद स्वामीजी अभी वाराणसी में हैं और मैं कोलकाता में हूं। चूंकि वे संन्यासी हैं परिव्राजन करना उनका कर्तव्य है इसलिए मैं उन्हें यहप्रस्ताव देता हूं कि वे यदि उचित समझें तो मेरे मार्ग व्यय पर कोलकाता मेरे अभ्यागत के रूप में कोलकाता पधारेऔर यहां के शंकर मठ में जो कि 100 वर्ष से अधिक प्राचीन मठ है और जिसमें स्वयं आदि शंकराचार्य विग्रह स्वरूप में विराजमान हैं मुझसे शास्त्रार्थ करलें ।यदि ऐसा करने में वह कठिनाई महसूस करें तो गुरुपूर्णिमा के दिन आदि शंकराचार्य के विग्रह की पूजा करने मैं भदोही जनपद स्थित महाशक्ति पीठ अजोरा धाम में आऊंगा। उनकी अपेक्षा के अनुसार दो -तीन दिन पहले भी कर सकता हूँ जिससे किउनके चातुर्मास व्रत में कोई बाधा ना पड़े और यहां से शास्त्रार्थ कर वे अपने व्रत स्थल पर समय से पहुंच जाए। परंतु यदि वे तत्काल वाराणसी में ही शास्त्रार्थ करना चाहते हैं तो वे मेरे आने-जाने और होटल में ठहरने की समुचित व्यवस्था करें मैं वाराणसी में ही आकर उनसे शास्त्रार्थ कर लूंगा। वह ब्राह्मण ही क्या जो वाद से पलायन कर जाए। उनकी यह इच्छा को मैं अवश्य ही पूर्ण करूंगा और भारी संख्या में जन समुदाय की उपस्थिति मे सर्वजन बोधगम्यशास्त्रार्थ करूंगा जिससे कि सर्वसाधारण को यह निर्णयनिर्णय लेने में कोई असुविधा न हो कि विजेता कौनहै । वैसे आदि शंकराचार्य की परंपरा यह है कि जब सन्यासी आदि शंकराचार्य और गृहस्थ मंडन मिश्र जी के बीच में शास्त्रार्थ हुआ तब मंडन मिश्र जी की अर्धांगिनी ही निर्णायिका बनाई गई थी अतः इस परंपरा के अनुसार मेरी अर्धांगिनी को ही निर्णायिका बनाना परम्परानुकूल होगा।

गोविंदानंद सरस्वती स्वामीजी एक बहुरूपिया और ढोंगी ठग :-

२. विदित हो कि गोविंदानंद सरस्वती स्वामीजी एक बहुरूपिया और ढोंगी व्यक्ति है जो यह भलीभांति जानते हुए भी कि वह ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का दंडी संन्यासी नहीं हैं परंतु फर्जी दस्तावेजों को निर्मित करके अपने आधार पत्र संख्या 840652303973 में स्वयं को उनका “एस /ओ” लिखवाकर, जगतगुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी, ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम और उनसे तथा ज्योतिर्मठ से हितबद्ध धार्मिक वर्ग / समूह के हितों को ज्योतिष्पीठ सेवा समिति, तथा श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के तर्ज पर श्री हनुमत जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का फर्जी दस्तावेजों के द्वारा गठन करके इस प्रकार के प्रतिरूपण द्वारा छल करके जहां एक ओर आस्थावान हिंदुओं को बेमानी से संपत्ति परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित कर ठग रहा है वहीं दूसरी ओर ज्योतिर्मठ के धन जंगम संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति को प्राप्त करने के प्राधिकार के निमित्त कूट दस्तावेजों की विविध अधिकारियों से तात्पर्यित पत्राचार कर फर्जी सृजित किया है और दस्तावेजों व इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों की यह कूट रचना उसने इस आशय से भी किया है कि यह छल के प्रयोजन से उपयोग में लाई जाएगी।

कानूनी कार्यवाही :

३. ‘गोविंदानंद सरस्वती स्वामीजी’ नामधारी ठग, कपटी, धोखेबाज , ढोंगी, जालसाज, एवं उसके विधि विरुद्ध धारा 295 ए, 406, 409, 419, 420, 427, 465, 467, 468, 469, 471, 474, 500, 504, 505, 34, 109 और 120-बी भारतीय दंड संहिता, 1860 तथा धारा 66-डी 72 एवं 72ए सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत आपराधिक कृत्यों के प्रति दंडात्मक कार्यवाही आरंभ करने के क्रम में 7 जून 2024 के दिन वाराणसी के चौक थाने में लिखित परिवादपत्र दिया गया है।

विशेष विवरण :

४. संलग्न चौक थाना वाराणसी को दिया गया एफ आई आर प्रतिवेदन

भवदीय

राजेन्द्र प्रसाद मिश्र

आधार क्रमांक 493831768758

मुख्तार आम जगतगुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज वजरिए पंजीकृत मुख्तारनामा , ई पंजीकरण संख्या MP268152022 A 41097931 दिनांक 03.11.2022 कार्यालय उप पंजीयक कार्यालय, गोटेगांव, नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश, भारत।

एवं

हितरक्षक ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम हिमालय, उत्तराखंड, भारत

वर्तमान निवासी : बी 6/97, श्री विद्यामठ पीतामबरपुरा,केदारघाट, वाराणसी.

दिनांक : 10.06.2024

 

 

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