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जिला रुद्रप्रयाग के बगसीर गांव मै हल चलाते वक्त द्वारिका प्रसाद को मिला अपने ही खेत में पौराणिक मंदिर होने के संकेत :- कुंड की आकृति में पौराणिक कारीगरों द्वारा नकाशी गई पत्थर की शीला में शेषनाग की आकृति वाला कुंड :- क्षेत्रीय जनमानस में आस्था का भाव है! फिलहाल खुदाई के साथ पौराणिकुंड जैसे आकृति की पूजा अर्चना की जा रही है!:- श्री घुनेश्वर महाराज जी समीप बिराजमान है!

वरिष्ठ संवाददाता :-ॐ प्रकाश केदारखंडी :- बीएचपी न्यूज़ हिमालय की आवाज देवभूमि से सनातन धर्मियों के लिए यह रिपोर्ट

जिला रुद्रप्रयाग के बगसीर गांव मै हल चलाते वक्त द्वारिका प्रसाद को मिला अपने ही खेत में पौराणिक मंदिर होने के संकेत :- कुंड की आकृति में पौराणिक कारीगरों द्वारा नकाशी गई पत्थर की शीला में शेषनाग की आकृति वाला कुंड :- क्षेत्रीय जनमानस में आस्था का भाव  है!  फिलहाल खुदाई के साथ पौराणिकुंड जैसे आकृति की पूजा अर्चना की जा रही है!:- श्री घुनेश्वर महाराज जी समीप बिराजमान है!

 

श्री घुनेश्वर महाराज जी के मंदिर के अवशेष होने की पूर्ण संभावना है! :- द्वारिका प्रसाद बक्शीर गांव से

वरिष्ठ संवाददाता :-ॐ प्रकाश केदारखंडी :- बीएचपी न्यूज़ हिमालय की आवाज देवभूमि से सनातन धर्मियों के लिए यह रिपोर्ट

देवभूमि उत्तराखंड के भौगोलिक फैलाव में तमाम मठ मंदिर बद्री पंच केदार गंगा जमुना जैसी पवन नदियों के साथ नाना प्रकार के सिद्ध पीठ भी देवभूमि उत्तराखंड में ही मौजूद है! सनातन धर्म के इस उद्गम स्थल में जनपद रुद्रप्रयाग से एक अनोखी आश्चर्यचकित करने वाली खबर सामने आई है! बक्शीर गांव के द्वारिका प्रसाद आप नहीं खेत में हल चलाते वक्त आश्चर्यचकित हो गए की उनका हाल किसी पत्थर से टकराया वह कोई साधारण पत्थर नहीं था ! क्षेत्र के भक्तों के परम इष्ट देव कुलदेव श्री घुनेश्वर महाराज जी के मंदिर विरासत का क्षेत्र पौराणिक राजाओं के द्वारा बनाया गया मंदिर के अवशिष्ट बताया जा रहा हैं! पुरानी शिलालेख के साथ शेषनाग  आकृति  कुंड की सनिलाओं पर है! द्वारिका प्रसाद कंफ्यूजन में है पुराना कुंड कहूं या हवन कुंड यह पूर्णताएं खुदाई के बाद ही पूरा पता और सत्य पता चल पाएगा फिलहाल क्षेत्रीय जनमानस में अपने सनातन और भक्ति भाव के प्रति नहीं जागृति उत्पन्न हुई, खेत में मिले पुराने शिला मै शेषनाग की आकृति का फोटो चिन्ह आकृति पत्थरों में पौराणिक काल से बनाया गया है! यह एक गहरा शोध का विषय है! पुरातत्व विभाग रुद्रप्रयाग को इस पर फौरन संज्ञान लेना चाहिए

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