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गाय हमें पालती है, हम गाय को नहीं -शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती

गोमाता हम सबका पालन करती है। जो लोग यह कहते हैं कि हम गाय को पाल रहे हैं उनको थोड़ा सूक्ष्म दृष्टि से विचार कर लेना चाहिए। क्या बच्चा माॅ को पालता है या माॅ बच्चे को पालती है। इस दृष्टिकोण से विचार यदि करेंगे तो आप स्वतः ही कहेंगे कि हम नहीं अपितु गाय ही हमारा पालन करती है।

गाय हमें पालती है, हम गाय को नहीं

-शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती

 

वरिष्ठ संवाददाता :- हिमालय की आवाज देवभूमि :-

ॐ प्रकाश केदारखंडी

गोमाता हम सबका पालन करती है। जो लोग यह कहते हैं कि हम गाय को पाल रहे हैं उनको थोड़ा सूक्ष्म दृष्टि से विचार कर लेना चाहिए। क्या बच्चा माॅ को पालता है या माॅ बच्चे को पालती है। इस दृष्टिकोण से विचार यदि करेंगे तो आप स्वतः ही कहेंगे कि हम नहीं अपितु गाय ही हमारा पालन करती है।

उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती १००८ ने गोसंसद् के दूसरे दिन अपने उद्बोधन के अवसर पर कही।

 

*गाय को जो पशु समझे वह स्वतंत्र पशु है*

-श्री गोपालमणि जी

गोमाता राष्ट्रमाता प्रतिष्ठा आन्दोलन के संयोजक श्री गोपाल मणि जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जो गाय को पशु समझता है वह स्वयं पशु है। सारे वेद स्पष्ट रूप से इस बात का उद्घोष करते हैं कि गाय पशु नहीं है। जिस प्रकार गुरु मनुष्य होकर भी मनुष्य नहीं है, गंगा नदी होकर भी नदी नहीं है ऐसे ही गाय पशु होकर भी पशु नहीं है।

प्रश्नकाल में सांसदों के प्रश्न का उत्तर परमाराध्य शङ्कराचार्य जी महाराज ने दिया। उन्होंने कहा कि इस गो संसद् में नियुक्त गोसांसद अपने अपने क्षेत्र में जाकर भारत की संसद् में मनोनीत सांसदों को गोमाता के प्रति जागरुक करें।

गोसंसद् का प्रारम्भ प्रातः 9 बजे से हुआ जिसमें कल के शेष सदस्यों ने गौसांसद् के रूप में शपथ ग्रहण किया। प्रश्नकाल में गो सांसदों ने अपने प्रश्न पूछे जिसका उत्तर संसद् के अध्यक्ष के रूप में विराजमान परमाराध्य शङ्कराचार्य जी महाराज ने दिया।

 

जगद्गुरुकुलम् के छात्र पं आशुतोष दुबे ने वैदिक मंगलाचरण व देवेन्द्र धर दुबे जी ने पौराणिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया। संसदीय सभा का संचालन श्री किशोर दवे जी ने किया।

 

*स्वतन्त्रता तिथि महोत्सव पर शङ्कराचार्य जी ने किया ध्वजारोहण*

 

यह हमारे देश की विडम्बना है कि यहाँ दो कैलेण्डर से लोग अपना जीवन चला रहे हैं। भारत से अंग्रेज चले गये पर अंग्रेजी कैलेण्डर अभी भी चल रहा है। हम सनातनी लोग भारतीय तिथियों में अपना पर्व उत्सव मनाते हैं तो फिर राष्ट्रीय पर्व भारत की तिथियों में क्यों न मनाया जाए। शङ्कराचार्य जी विगत अनेक वर्षों से भारतीय तिथि के अनुसार ही राष्ट्रीय पर्व मनाते आ रहे हैं। इसी क्रम में आज उन्होंने श्रावण कृष्ण चतुर्दशी अर्थात् आज की तिथि को भारत का स्वतन्त्रता दिवस मनाया।

 

संसद् के समापन के अवसर पर आहाना कृष्ण पाठक, सुदीक्षा पाठक और श्लोक पाठक ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किए।

 

उक्त जानकारी परमधर्माधीश शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने दी है।

 

प्रेषक

संजय पाण्डेय

मीडिया प्रभारी।

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